राजधानी में कोई भी जातीय समुदाय प्रभावी नहीं है। किसी भी समुदाय की आबादी 20% से ज्यादा नहीं है।

(अमन न्यूज़ बेशक दिल्ली में जातियों की कोई गणना नहीं हुई है, लेकिन सभी राजनीतिक दल अपने-अपने स्तर पर आंकड़ा रखते हैं। इसके हिसाब से राजधानी में कोई भी जातीय समुदाय प्रभावी नहीं है। किसी भी समुदाय की आबादी 20% से ज्यादा नहीं है।

सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति की आबादी 17.68% है। वहीं, पूर्वांचल व पंजाबी मतदाता भी कमोबेश इतने ही हैं। तीनों समूहों के मतदाताओं का किसी पार्टी के साथ जाना जीत की गारंटी देता है। मुस्लिम के साथ वैश्य, जाट, ब्राह्मण, गुर्जर, यादव, राजपूत और उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले मतदाताओं की संख्या 10% से कम है। 



तीन लोकसभा क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी 10% से अधिक है। चार अन्य में यह पांच फीसदी के करीब है। वैश्य मतदाता भी तीन सीटों पर 10 फीसदी से अधिक हैं। जाट समुदाय का बोलबाला दो लोकसभा सीटों पर है, जबकि गुर्जर मतदाता एक सीट पर प्रभावी है। ब्राह्मण मतदाता वैसे तो सभी क्षेत्रों में हैं, लेकिन एक क्षेत्र में ही इनकी संख्या 10 प्रतिशत से अधिक है।

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