3 तलाक पर पृवी जज नज़ीर का फैसला क्यों भुला दिया जा रहा।


अब्दुल नज़ीर सुप्रीम कोर्ट के जज बन ने से पहले करनाटक हई कोर्ट के एडिश्नल जज थे वर्ष 2003 में इस पद पर नियत किआ था लेकिन बाड़ी बात यी है पर्श 2017 में सुप्रीम कोर्ट का जज बनने के बाद वो अपनी 6 साल की सेवा में 200 से भी ज्यादा भेंचिज का हिस्सा रहे और उन्होंने कुल मिला कर 93 मामलो में मेहतपुड़ फैसले सुना ये लेकिन इन फेसलो की आज कोई चरचा नहीं कर रहा आज सिर्फ लोग लोग राम मंदिर की चरचा कर रहा है या तो नॉट बंदी की चरचा कर रहे है।  और उन्होंने ने जो बाकि मेहनत की अपनी जीवन में 93 और मामलो की सुनाई करके शानदार फैसले दिए होयेगे या सही फैसले दिये होयेगे और लोगो ने उन फैसलो को भुला दिया और सारे फेसलो पर राम मंदिर या नोट बंदी  का फेसला हावी होगया  इसी को कहते है राजनीती। आज हम आपको बताना चाहते है की अगस्त 2017 में जब सुप्रिम कोर्ट में 5 जजों की बेंच में 3 तलाक के बारे में अपना फैसला सुनाया था तब 3 जजों ने 3 तलाक को असम्भिद माना था लेकिन जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने तब कहा तह था की वो 3 तलाक को असममित करार नहीं दे सकते क्युकी ये  काम संगसाद का है नाकि नियाये पालिका का यानि इस मामले में उनकी गये अपने ही बैंच बाकि जजों से अलग थी लेकिन आज उनके इस फैसले की बात कही नहीं हो रही जब आप उनके सरे फेसलो के बारे में पड़ोगे तो आपको पता चलेगा उन्होंने वोही किया जो सही था और उन्होंने ईमानदारी और पूरी निष्ठा के साथ अपना करतविये निभाया है और आज उन्ही के सम्पर्था के लोग उन्हें मुस्लमान होने की सज़ा दे रही है और क्यों दे रहे है क्युकी को धरम विश मुस्लमान है कट्टर पाँति मुस्लमान नहीं है इस्सी बात की सजा है। उन्होंने 3 तलाक के मामले में अपनी बेन्च से अलग फैसला दिया तो राम मंदिर के मामले में उन्होंने अपनी बेंचके साथ ही माशरवा किया अपनी जिससे ये पता चलता है की वो अपना काम सही और नियाये से करते थे और दुख की बात ये है की उन्हें एक ही फैसले को लेकर उनकी ट्रीपली हो रही है उनके मुस्लमान होने पर सच्चा मुस्लमान होने पर सवाल खड़े करे जा रहे है।

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