मप्र उपचुनाव: सामान्य सीटों पर भाजपा का ओबीसी दांव, कितना सफल होगा 'सेमीफाइनल'?
( अमन न्यूज़ )
कांग्रेस इन उपचुनावों को राज्य में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल मान रही है, जबकि भाजपा उपचुनाव के नतीजों को शिवराज सरकार के कामकाज पर जनता की मोहर के रूप में देखेगी। लिहाजा दोनों पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है। जहां तक चुनावी मुद्दों की बात है तो स्थानीय मुद्दे और जातिगत समीकरण ही इन चुनावों में निर्णायक होंगे। हालांकि आसन्न बिजली संकट और प्रदेश में उर्वरक वितरण में व्यवस्था जल्द न सुधरी तो किसानों की नाराजी सत्तारूढ़ भाजपा को महंगी पड़ सकती है।
मध्यप्रदेश में होने जा रहे एक लोकसभा सीट और तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजों से शिवराज सरकार की सेहत पर तो कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन ये चुनाव सरकार के कामकाज को लेकर जनता के मूड का आईना जरूर होंगे। इस चुनावी दंगल में दिलचस्पी का विषय यही है कि राज्य के दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा और कांग्रेस अपनी सीटें बचाने और दूसरे की सीट छीनने में कितने कामयाब हो पाते हैं।ये उपचुनाव खंडवा लोकसभा सीट तथा रैगांव, पृथ्वीपुर एवं जोबट विधानसभा सीट पर हो रहे हैं। ये सभी सीटें यहां के जनप्रतिनिधियों के निधन से खाली हुई हैं। इनमें से रैगांव (अजा) तथा जोबट (जजा) के लिए आरक्षित सीटें हैं, जबकि खंडवा लोकसभा व पृथ्वीपुर विधानसभा सीट सामान्य है। इस बार भाजपा ने सामान्य सीटों पर ओबीसी कार्ड खेला है, जो पार्टी की पिछड़ा वर्ग केंद्रित रणनीति का प्री-टेस्ट भी होगा। पार्टी के लिहाज से पिछले लोकसभा चुनाव में खंडवा सीट भाजपा के नंदकुमार सिंह ने जीती थी तो जोबट तथा पृथ्वीपुर विधानसभा पर कांग्रेस का कब्जा था, जबकि रैगांव विधानसभा सीट भाजपा ने जीती थी।जहां तक चुनावी मुद्दों की बात है तो स्थानीय मुद्दे और जातिगत समीकरण ही इन चुनावों में निर्णायक होंगे। हालांकि आसन्न बिजली संकट और प्रदेश में उर्वरक वितरण में व्यवस्था जल्द न सुधरी तो किसानों की नाराजी सत्तारूढ़ भाजपा को महंगी पड़ सकती है। इसके अलावा जोबट और पृथ्वीपुर में दलबदलू को टिकट देना भाजपा के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है। कांग्रेस इन उपचुनावों को राज्य में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल मान रही है, जबकि भाजपा उपचुनाव के नतीजों को शिवराज सरकार के कामकाज पर जनता की मोहर के रूप में देखेगी। लिहाजा दोनों पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है। जहां तक इन सीटों के राजनीतिक चरित्र की बात है तो खंडवा सीट पर बीते 25 सालों में (2009 के लोकसभा चुनाव का अपवाद छोड़कर) यहां से भाजपा ही जीतती रही है। खंडवा लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें खंडवा, बुरहानपुर, नेपानगर, पंधाना, मांधाता, बड़वाह, भीकनगांव और बागली शामिल हैं। ये सीटें भी चार जिलों खंडवा, बुरहानपुर, खरगोन और देवास जिलों में बंटी हैं। इस लोकसभा क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से 3 पर बीजेपी, 4 पर कांग्रेस और 1 सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी का कब्जा है। 2009 में लोकसभा चुनाव जीतने वाले कांग्रेस के अरूण यादव इस बार भी अपनी उम्मीदवारी पक्की मान रहे थे। उन्होंने चुनाव प्रचार शुरू भी कर दिया था। लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के चलते उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ले ली। वैसे तो इस सीट पर कुल 16 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में ही है। कांग्रेस ने यहां से अपने पुराने नेता राजनारायण सिंह पुरनी को टिकट दिया है। राजनारायण पहले भी दो बार विधायक रह चुके हैं और उनकी छवि निर्विवाद है। वो जाति से ठाकुर हैं। भाजपा ने जवाबी चाल चलते हुए ज्ञानेश्वर पाटिल पर दांव खेला है। पाटिल ओबीसी हैं। इस सीट पर दिवंगत सांसद नंदकुमार सिंह के बेटे हर्ष सिंह चौहान की भी दावेदारी थी। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान उनके पक्ष में थे, लेकिन स्थानीय राजनीति में नंदकुमार सिंह की धुर विरोधी रही भाजपा की अर्चना चिटनिस के विरोध तथा हर्ष को मजबूत प्रत्याशी न मानने के संगठन के आकलन के चलते ज्ञानेश्वर को टिकट मिला। ज्ञानेश्वर नंदकुमारसिंह के करीबी भी रहे हैं। कांग्रेस के पुरनी अच्छे उम्मीदवार हैं, लेकिन कांग्रेस में अंतर्कलह काफी है। उसकी सारी उम्मीदें इस समीकरण पर टिकी हैं कि खंडवा लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 4 आदिवासी सीटों पर उसे अच्छा समर्थन मिलेगा। लेकिन भाजपा ने भी आदिवासियों में पैठ बनाई है साथ ही उसके पास मजबूत संगठन भी है।इस सीट पर एससी/एसटी तथा ओबीसी वोटर निर्णायक होंगे। वैसे भी खंडवा लोकसभा सीट पर ज्यादातर बुरहानपुर क्षेत्र का उम्मीदवार ही जीतता रहा है। यह बात भी ज्ञानेश्वर के पक्ष में जाती है। लिहाजा कांग्रेस के लिए भाजपा से यह सीट छीनना आसान नहीं है।
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