दस्तावेज गायब करने और सबूतों से छेड़छाड़ को हल्के में नहीं ले सकते
(अमन न्यूज़ )
दिल्ली पुलिस ने अदालत के समक्ष तर्क रखा कि 1997 में हुए उपहार अग्निकांड जैसे संवेदनशील मामले में दस्तावेजों के गायब करने और सबूतों से छेड़छाड़ को हल्के में नहीं लिया जा सकता। पुलिस ने कहा आरोपियों ने एक षडयंत्र रचकर अदालत के स्टॉफ से मिलकर दस्तावेज गायब कर ट्रायल को प्रभावित करने का प्रयास किया है।
यह मामला उपहार अग्निकांड के मुख्य मामले के सबूतों से छेड़छाड़ से जुड़ा है, जिसमें रियल एस्टेट कारोबारी सुशील और गोपाल अंसल को दोषी करार दिया गया था और सुप्रीम कोर्ट ने दो साल की जेल की सजा सुनाई थी। हालांकि अदालत ने उनको जेल में काटी अवधि को ही सजा मानते हुए इस शर्त पर रिहा कर दिया कि वे राजधानी में ट्रामा सेंटर बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले 30 करोड़ रुपये के जुर्माने का भुगतान करेंगे।
अंसल बंधुओं के साथ ही मामले में आरोपी कोर्ट स्टाफ दिनेश चंद शर्मा और अन्य पी पी बत्रा, हर स्वरूप पंवार, अनूप सिंह और धर्मवीर मल्होत्रा पर मौजूदा मामले में केस दर्ज किया गया था। सुनवाई के दौरान इस दौरान पंवार और मल्होत्रा की मौत हो गई।
मुख्य मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पंकज शर्मा के समक्ष अभियोजन पक्ष ने कहा कि ऐसे मामले में दस्तावेजों के गायब होने और साक्ष्यों से छेड़छाड़ को हल्के में नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा अंतरराष्ट्रीय असर वाले शहर के सबसे संवेदनशील मामले से संबंधित हजार से अधिक पृष्ठों की भारी-भरकम फाइलों से कई सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों को आरोपियों ने एक षडयंत्र के तहत गायब कर दिया था। अदालत ने मामले की सुनवाई 31 अगस्त तय की है। 13 जून 1997 को हिन्दी फिल्म बॉडर की सक्रीनिंग के दौरान 59 दर्शकों की मौत हो गई थी।
यह मामला उपहार पीड़ित एसोसिएशन की अध्यक्ष नीलम कृष्णमूर्ति की शिकायत पर हाई कोर्ट के निर्देश पर दर्ज किया गया था। आरोपियों पर आईपीसी की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 109 (उकसाने), 201 (अपराध के सबूत गायब होने के कारण) और आईपीसी की 409 (विश्वास भंग) के तहत अपराध करने का आरोप है।
हाईकोर्ट के कड़े रवैये को देख केंद्र सरकार ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) के मसौदे को सभी 22 क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को यह जानकारी देते हुए कहा कि इस प्रक्रिया को पूरी करने में चार हफ्ते का समय लगेगा।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल एवं न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ के समक्ष पेश एएसजी चेतन शर्मा ने इस कार्य को पपूरा करने के लिए सरकार को समय प्रदान करने आग्रह किया। पीठ ने उनके आग्रह को स्वीकार कर समय प्रदान करते हुए सुनवाई 21 अक्टूबर तय कर दी।
एएसजी तथा केंद्र सरकार के वकील अनुराग अहलूवालिया ने कहा कि मसौदे का कई भाषाओं में अनुवाद होना है, इसलिए इसमें थोड़ा समय लगेगा। उन्होंने कहा सरकार 30 जून, 2020 के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका को जारी नहीं रखना चाहती। फैसले में पर्यावरण मंत्रालय को मसौदा ईआईए अधिसूचना को आदेश के 10 दिन के अंदर सभी 22 भाषाओं में अनुवाद कराने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने यह आदेश पर्यावरण संरक्षक विक्रांत टोंगाट की जनहित याचिका पर दिया था।
पीठ ने इससे पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) के मसौदे को कुछ ही भाषाओं में अनुवाद करने पर सवाल उठाते हुए कहा था कि सुदूर के इलाके लोगों को भी पूरी स्थिति जानने का अधिकार है और यदि ऐसा नहीं किया गया तो उन्हें कैसे पता चलेगा कि आखिर मसौदे में क्या है। अदालत ने केंद्र सरकार के उस तर्क को खारिज कर दिया था कि सभी भाषोओं में मसौदा तैयार करना संभव नहीं है और अनुवाद करना काफी मुश्किल है। अदालत ने केंद्र सरकार को मसौदा सभी 22 भाषाओं में तैयार करने का निर्देश दिया था।
हाईकोर्ट ने जंतर-मंतर पर आयोजित रैली में सांप्रदायिक नारे लगाने और एक धर्म विशेष के खिलाफ प्रचार के लिए युवाओं को उकसाने के मामले में आरोपी हिंदू रक्षा दल के अध्यक्ष भूपिंदर तोमर उर्फ पिंकी चौधरी की गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। यह रैली 8 अगस्त को हुई थी। अदालत ने कहा प्रथम दृष्टया सभी तरह के नारे और भाषण देने की बात सामने आई है।
न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने फिलहाल आरोपी की अग्रिम जमानत अर्जी पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा पुलिस की रिपोर्ट पर ही कोई निर्णय किया जाएगा। अदालत ने मामले की सुनवाई 13 सितंबर तय की है।
अदालत ने सुनवाई के दौरान आरोपी को अंतरिम सुरक्षा देने से इनकार करते हुए कहा वे जानना चाहती है कि याची नारेबाजी के समय कहां था। क्या आप प्रदर्शन में मौजूद नहीं थे?
तोमर की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि उनका मुवक्किल कार्यक्रम का आयोजक नहीं था। उन्हें मामले में पहले निचली अदालत ने गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी। अभियोजन पक्ष के वकील तरंग श्रीवास्तव ने बताया कि वह कथित आपत्तिजनक नारेबाजी का वीडियो और अन्य सामग्री अदालत के समक्ष पेश कर चुके हैं।
इस मामले में हाल ही में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनिल अंतिल ने भूपिंदर तोमर उर्फ पिंकी चौधरी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की थी कि हम तालिबान राज्य नहीं हैं। अदालत ने कहा था कि अतीत में इस तरह की घटनाओं ने सांप्रदायिक तनाव भड़काया है जिससे दंगे हुए हैं और जान-माल का नुकसान हुआ है।अदालत ने स्पष्ट किया था कि हम तालिबान राज्य नहीं हैं यहां कानून का राज, हमारे बहुसांस्कृतिक और बहुलतावादी समुदाय के शासन का पवित्र सिद्धांत है। आज जब पूरा भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तब कुछ ऐसे लोग हैं जो अब भी असहिष्णु और स्वकेन्द्रित मानसिकता में जकड़े हुए हैं।
अदालत ने कहा था कि जो साक्ष्य उपलब्ध हैं उससे मामले में आरोपी की संलिप्तता प्रथम दृष्टया स्पष्ट है और आरोपी पर लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं।
पुलिस ने अग्रिम जमानत अर्जी का विरोध करते हुए आरोप लगाया था कि आरोपियों ने जंतर-मंतर पर मंच का इस्तेमाल सांप्रदायिक विद्वेष पैदा करने और अपनी योजनाओं को सांप्रदायिक रंग देने के लिए किया, युवाओं को एक विशेष धर्म के खिलाफ उकसाया, जबकि सक्षम प्राधिकारी ने सभा को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था।
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