पहले के मुकाबले अब धीमा फैल रहा है कोरोना, रिप्रोडक्शन रेट में गिरावट


(अमन न्यूज़) रिप्रोडक्शन रेट में कमी के बारे में अच्छी बात यह है कि ऐसा भारत में टेस्टिंग बढ़ाने के बाद हुआ है. पिछले सात दिनों में जब से भारत का रिप्रोडक्शन रेट 1 से नीचे रहा है, देश भर में कुल 75 लाख से ज्यादा टेस्ट किए गए. यह प्रति दिन दस लाख से ज्यादा है.



देश में छह महीने से कहर ढा रही महामारी और अब तक 60 लाख से ज्यादा केस होने के बाद आखिरकार कुछ अच्छी खबरें भी आ रही हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि कोरोना वायरस की रिप्रोडक्शन रेट यानी आर वैल्यू नियंत्रण में है. रिप्रोडक्शन रेट (प्रजनन दर या संक्रमण दर) कोरोना वायरस की फैलने की क्षमता को दर्शाने का एक तरीका है.


अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के COV-IND स्टडी ग्रुप के अनुसार, पिछले एक हफ्ते से कोरोना की रिप्रोडक्शन रेट 1 से नीचे है. इसका मतलब यह हुआ कि एक मरीज जो वायरस से संक्रमित है, वह औसतन एक से भी कम लोगों को संक्रमित कर रहा है.


कोरोना महामारी शुरू होने से लेकर अब तक ये पहली बार है जब रिप्रोडक्शन रेट 1 से नीचे आया है और इसी स्तर पर बना हुआ है. अगर रिप्रोडक्शन रेट कम से कम दो हफ्ते तक 1 से नीचे रहे तो कहा जा सकता है कि स्थिति नियंत्रण में है.


रिप्रोडक्शन रेट में गिरावट


मिशिगन यूनिवर्सिटी के ऐप के अनुसार, भारत में महामारी के बाद से कोरोना का रिप्रोडक्शन रेट 21 सितंबर को पहली बार 1 से नीचे आ गया. मिशिगन यूनिवर्सिटी के कैंसर सेंटर में महामारी विज्ञान के प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी ने इंडिया टुडे को बताया, “मुझे ऐसा लगता है कि वायरस के ग्राफ में वाकई एक आशावादी रुझान है. राष्ट्रीय आंकड़े मुझे उत्साहित कर रहे हैं क्योंकि टेस्टिंग में काफी वृद्धि हुई है.”


रिप्रोडक्शन रेट का लगातार 1 से नीचे बने रहना यह परिभाषित करेगा कि भारत कोरोना को कितनी अच्छी तरह नियंत्रित करने में सक्षम है. रिप्रोडक्शन रेट में कमी के बारे में अच्छी बात यह है कि ऐसा भारत में टेस्टिंग बढ़ाने के बाद हुआ है. पिछले सात दिनों में जब से भारत का रिप्रोडक्शन रेट 1 से नीचे रहा है, देश भर में कुल 75 लाख से ज्यादा टेस्ट किए गए. यह प्रति दिन दस लाख से ज्यादा है.


ज्यादा केस वाले राज्यों में अच्छे संकेत


कोरोना के रिप्रोडक्शन रेट में गिरावट से ये भी पता चलता है कि कई राज्य जिनमें केस सबसे ज्यादा हैं, वहां भी रिप्रोडक्शन रेट काफी कम है. 26 सितंबर के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के करीब 14 बड़े राज्यों में अब रिप्रोडक्शन रेट 1 से नीचे है. इसके मुताबिक, भारत में रिप्रोडक्शन रेट का राष्ट्रीय औसत 0.96 है, जबकि नौ राज्य ऐसे हैं जहां यह राष्ट्रीय औसत से भी कम है.


यहां तक कि महाराष्ट्र में ताजा रिप्रोडक्शन रेट 0.93 दर्ज किया गया है, जो राष्ट्रीय औसत से कम है. ये तब है जब देश में कुल कोरोना केस का 22 प्रतिशत अकेले महाराष्ट्र में है. इसका सीधा सा मतलब है कि महाराष्ट्र में 100 संक्रमित लोग 93 नए लोगों को संक्रमित कर रहे हैं. इस तरह वायरस की रफ्तार धीमी पड़ी है.


बड़े राज्यों में से आंध्र प्रदेश में न्यूनतम रिप्रोडक्शन रेट 0.85 दर्ज किया गया है. इसके बाद उत्तर प्रदेश (0.87) और हरियाणा (0.88) हैं. पंजाब (0.90), कर्नाटक (0.91), छत्तीसगढ़ (0.91), जम्मू और कश्मीर (0.91), असम (0.94), और झारखंड (0.94) भी उन राज्यों में शामिल हैं जहां का रिप्रोडक्शन रेट राष्ट्रीय औसत से कम है.


दिल्ली, बिहार, तेलंगाना और तमिलनाडु में भी रिप्रोडक्शन रेट 1 से कम है, लेकिन इन राज्यों में यह 0.96 के राष्ट्रीय औसत से ऊपर है. केरल एक समय महामारी को नियंत्रित करने में सबसे अच्छा प्रदर्शन कर रहा था, लेकिन फिलहाल इसकी स्थिति खराब है. केरल में कोरोना की रिप्रोडक्शन रेट 1.35 तक पहुंच गई है. इसका मतलब है कि केरल में एक संक्रमित व्यक्ति एक से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर रहा है.


केरल में पिछले चार दिनों से 6,000 से अधिक नए केस दर्ज किए जा रहे हैं. रविवार को यहां 7,445 केस दर्ज किए, जो कि महामारी के बाद से अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. पश्चिम बंगाल जहां पिछले महीने हर दिन करीब 3,000 केस दर्ज किए गए हैं, वहां भी रिप्रोडक्शन रेट 1 है. इसका मतलब है कि यहां एक संक्रमित व्यक्ति 1 नए व्यक्ति को संक्रमित कर रहा है. ओडिशा (1.06), गुजरात (1.04), राजस्थान (1.09) और मध्य प्रदेश (1.08) में रिप्रोडक्शन रेट 1 से ज्यादा है.


पॉजिटिविटी रेट का रहस्य


इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने पाया कि अधिकांश राज्यों में जहां रिप्रोडक्शन रेट 1 से कम है, वहां टेस्ट पॉजिटिविटी रेट (TPR) काफी ज्यादा है. टेस्ट पॉजिटिविटी रेट का मतलब है कि जितने लोगों का टेस्ट किया गया, उनमें से कितने प्रतिशत लोग पॉजिटिव पाए गए. कुल टेस्ट में से पॉजिटिव लोगों की संख्या को टेस्ट पॉजिटिविटी रेट कहते हैं.


टीपीआर का राष्ट्रीय औसत अब नीचे की ओर बढ़ रहा है, जबकि कई राज्यों में यह अब भी 5 फीसदी की सीमा से ऊपर है. इससे ये सवाल उठता है कि क्या कम टेस्टिंग ने रिप्रोडक्शन रेट पर असर डाला है? महाराष्ट्र में रिप्रोडक्शन रेट 0.93 है और टीपीआर 20 फीसदी है जो ऊपर की ओर बढ़ रहा है.


अशोका यूनिवर्सिटी में भौतिकी और जीव विज्ञान के प्रोफेसर गौतम मेनन का कहना है, “चूंकि रिप्रोडक्शन रेट की गणना डिटेक्ट हुए केसों के आधार पर की जाती है, इसलिए अगर नए केस का पता लगाने में कोई भी चूक हुई तो वह रिप्रोडक्शन रेट को बदल देगी. इसके कई कारण हो सकते हैं. जैसे, रोग के लक्षण वाले मरीजों की स्क्रीनिंग करना लेकिन बिना लक्षण वाले मरीजों की पहचान नहीं करना, टेस्ट में देरी और टेस्ट के रिजल्ट, कम संवेदनशीलता टेस्ट और पर्याप्त टेस्ट नहीं करना.”











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