जिस रणनीति से बाकी राज्यों में जीते, वही रणनीति जम्मू-कश्मीर में



नई दिल्ली (अमन न्यूज़) गुरुवार की शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया. कूटनीति और राजनीति के लिहाज से देखें तो मोदी का भाषण न तो भारत भर में फैले अपने प्रशंसकों के लिए था और न ही देशवासियों के लिए. उनके भाषण के नायक भी कश्मीरी थे, उदाहरण भी कश्मीरी थे और संदर्भ भी कश्मीरी. गुरुवार की शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को संबोधित करते हुए अपने पहले के तमाम भाषणों और ऐसे अवसरों से अलग लगे. आमतौर पर लंबे व्याख्यान देने वाले प्रधानमंत्री मोदी का भाषण 38 मिनट में समाप्त हुआ और कथानक कश्मीर तक सिमटा रहा. गाहे-बगाहे जम्मू और लद्दाख का ज़िक्र तो आया लेकिन इस दौरान न तो वो हिंदुओं को मज़बूत करने का नारा देते नज़र आए और न ही कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का मुद्दा उठाते. उनके भाषण के नायक भी कश्मीरी थे, उदाहरण भी कश्मीरी थे और संदर्भ भी कश्मीरी. विश्व समुदाय और कश्मीर के लिए मोदी के भाषण में दो संदेश थे. दोनों ही विश्वमंच पर सराहे जाने वाले शब्द हैं- डेवलेपमेंट और डेमोक्रेसी. मोदी अपने भाषण में या तो लोकतंत्र को मज़बूत करने, नई राजनीतिक पीढ़ी तैयार करने और तरह-तरह के चुनावों पर ज़ोर देते रहे और या फिर विकास के स्वप्न संसार में लोगों को भविष्य की छवियां दिखाने की कोशिश करते नज़र आए. ये दोनों ही बातें सकारात्मक हैं क्योंकि इसमें नौकरियां हैं, बेहतर जीवन स्तर है, समष्टिभाव है, बेहतर संसाधन और व्यापार है, मज़बूत लोकतंत्र है और लोगों की प्रतिभागिता का आह्वान है. लेकिन ऐसा नहीं है कि मोदी की यह रणनीति बिल्कुल नई ही है. मोदी का यह एक टेस्टड फार्मूला है तो अबतक सफल होता आया है और कम से कम उन्हें तो यह उम्मीद है ही कि कश्मीर के मामले में भी ये सही साबित होगा. कूटनीति और राजनीति के लिहाज से देखें तो मोदी का भाषण न तो भारत भर में फैले अपने प्रशंसकों के लिए था और न ही देशवासियों के लिए. पाकिस्तान का या भारत में पाकिस्तानी गतिविधियों का तो प्रधानमंत्री ने नाम तक नहीं लिया. मोदी दरअसल इस भाषण के ज़रिए कश्मीरी अवाम और विश्व समुदाय, दोनों को साधने की कोशिश कर रहे थे. कम से कम संदेश तो ये ही था.



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