आखिर क्यों ?
पत्रकारिता दिवस पर उभरते पत्रकार के विचार....
- भारती सिॆह
आज यानि 30 मई को हर जगह हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएं नजर आ रही है। कोई पत्रकारिता के इतिहास को खंगाल रहा, तो कोई इसकी साख बचाने का सुर अलाप रहा, कोई इसके बदलते शैली की दुहाई दे रहा, तो कोई इसे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के तौर पर होने के बावजूद सत्ता की कठपुतली का नाम दे रहा है।
लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है कि 21वीं सदी के इस पत्रकारिता क्षेत्र में जहां आज के युवाओं के लिए एक बेचैनी का सबब बन गया है। जो कल के भविष्य होंगे, उनकी इस पत्रकारिता महकमें को खयाल तक नहीं है। यहां कहने का अर्थ यह है कि वर्तमान समय में पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले युवाओं को कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।आज मीडिया में नौकरी नहीं है। कितने ही मीडिया कर्मियों को दिहाड़ी पर रखते हैं और सीनियर का काम जहां अपनी जूनियर की पीठ थपथपाने का होना चाहिए वहीं आज उसकी जगह टांग खींचने की हो गई है। जहां यह एहसास दिलाया जाता है कि मीडिया में कोई भविष्य नहीं है तो इसका हिस्सा मत बनो या फिर अगर बनना है तो जो काम मिल रहा है, जैसे मिल रहा है, वैसे करो, खुद की मर्जी मत चलाओ, खुद की मत सुनो।
इन सबसे हटकर जो एक बेहद अजीब बात है वह यह है कि मीडिया में कोई भी बिना जान-पहचान के एक अच्छे संस्थान में कार्य नहीं कर सकता है। यहां कहने का तात्पर्य यह है कि मीडिया क्षेत्र में कंपटीशन इतनी ज्यादा और तीव्र गति से बढ़ रही है कि युवा बेरोजगार है, इस कोर्स को करके भी घर बैठे हैं क्योंकि उन्हें कहीं भी किसी संस्थान में काम नही मिल रहा है ,काम करने के लिए रिफ्रेंस की आवश्यकता होती है।
जी हां..यह मेरा तजुर्बा कह रहा है कि किसी भी फ्रेशर के लिए मीडिया क्षेत्र में पैर जमाना बहुत मुश्किल काम है। ऐसा कहा जाता है कि मीडिया में भाई सबकुछ जुगाड़ से होता है। लानत है देश की इस चौथे स्तंभ की सोच के इस विकृत मानसिकता पर और क्रांतिकारी पत्रकारों पर जो किसी उभरते पत्रकार को मौका नहीं देते हैं बल्कि अपने जानकार या चहेते को, जो शायद उस काबिल भी ना हो, उसे मौका देते हैं।
वर्तमान समय में इसी वजह से छोटे-छोटे संस्थान, जिसे यूट्यूब चैनल या वेब-पोर्टल कहा जाता है वो खोल दिए जाते हैं क्योंकि युवाओं को कहीं कोई कार्य नहीं मिलता, जिस कारण व सोशल मीडिया पर खुद का ही एक संस्थान खोल देते हैं लेकिन कुछ दिनों में उसे भी बंद करना पड़ता है क्योंकि आखिर कब तक एक आम इंसान लड़ाई लड़े। वे हार मान लेते हैं क्योंकि इंसान कब तक भूखा रह सकता हैं, बिना पैसे कब तक कार्य कर सकता है।
जरूरत है इसे बदलने की, पत्रकारिता के क्षेत्र में निष्पक्ष रूप से फ्रेशर को मौका देने की..अपनी काबिलियत दिखाने की... जो देश के लिए... देश की जनता के लिए कुछ करना चाहते है
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